मुख्यमंत्री पोर्टल की शिकायतें, ‘भ्रष्टाचार का पोर्टल’? विभागीय जाँच के नाम पर न्याय की हत्या: को निर्वाण टाईम्स का खुला पत्र।

रिपोर्ट नरसिंह उपाध्याय उपसंपादक 

 

 

भाग1:  मुख्यमंत्री पोर्टल पर ‘जाँच का खेल‘!

शिकायतकर्ता के हाथ निराशा, आरोपी विभाग को ही जाँच की कमान सौंपना व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी।

पत्रकारिता की आवाज़ | ‘जनता की आवाज़’ है निर्वाण टाईम्स, झूठी आख्या से नहीं होगा न्याय का समझौता! |

 

महराजगंज के जिलाधिकारी संतोष कुमार शर्मा और पुलिस अधीक्षक सोमेंद्र मीना को संबोधित करते हुए निर्वाण टाईम्स के संवाददाता राकेश त्रिपाठी द्वारा समस्या का खुलासा।

मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत दर्ज होने के बाद संबंधित विभाग को ही जाँच सौंपने की ‘त्रुटिपूर्ण’ प्रक्रिया।

उद्देश्य: इस प्रक्रिया से होने वाले भ्रष्टाचार और न्याय में विलंब को उजागर करना।

भाग 2: ‘जाँच का खेल’ – समस्या का विस्तार 

स्वयं जांच, स्वयं निर्णय: यह कैसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। (उदाहरण: बिजली विभाग की शिकायत, जाँच भी बिजली विभाग द्वारा)।

शिकायतकर्ता का पक्ष: ऐसे कम से कम 3-4 वास्तविक उदाहरणों का वर्णन, जिनमें शिकायतकर्ता को न्याय नहीं मिला।

आख्या में घालमेल: संबंधित विभाग द्वारा किस तरह जल्दी और पूरी तरह से गलत आख्या लगाकर मामले को बंद कर दिया जाता है, जिससे पोर्टल पर केवल निस्तारण दर बढ़ती है, न कि गुणवत्ता।

भाग 3: प्रशासनिक विफलता और निर्वाण टाईम्स की अपील

डीएम-एसपी की भूमिका: जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से मांग कि वे ऐसी शिकायतों की जाँच अंतर-विभागीय या वरिष्ठ अधिकारियों के माध्यम से कराएं।

सुधार का सुझाव: पोर्टल में शिकायत को समान स्तर के दूसरे विभाग या नोडल अधिकारी को भेजने का विकल्प लागू करना।

सरकारी निर्देशों का उल्लंघन: क्या इस संबंध में कोई सरकारी निर्देश हैं? यदि हैं, तो महराजगंज के अधिकारी उनका पालन क्यों नहीं कर रहे हैं?

भाग 4: पत्रकारों के वर्जन और अधिकार 

वर्जन की अनिवार्यता: समय पर अधिकारी द्वारा वर्जन न देने पर होने वाली कठिनाइयाँ।

पत्रकारिता का पक्ष: यह स्पष्ट करना कि निर्वाण टाईम्स या संवाददाता राकेश त्रिपाठी किसी अधिकारी के वर्जन न देने के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।

अधिकारी की जिम्मेदारी: यह रेखांकित करना कि समय पर जवाब देना प्रशासनिक पारदर्शिता का हिस्सा है और वर्जन न देना लोकहित की अनदेखी माना जाएगा।

भाग 5: निष्कर्ष और आगे की राह 

गंभीरता का आह्वान: डीएम-एसपी से इस विषय को प्राथमिकता पर लेने का अनुरोध।

भविष्य की चेतावनी: निर्वाण टाईम्स द्वारा इस पर लगातार फॉलोअप करते रहने का संकल्प।

न्याय के लिए जनसुनवाई पोर्टल को एक प्रभावी मंच बनाना ही मुख्यमंत्री के स्वप्न को साकार करेगा।

 

 

महराजगंज। जनपद महराजगंज की प्रशासनिक व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल तब खड़ा होता है, जब प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ द्वारा जनता की समस्याओं के त्वरित और पारदर्शी निस्तारण हेतु बनाए गए मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल की कार्यप्रणाली पर ही गंभीर प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं। निर्वाण टाईम्स राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र के प्रशासनिक संवाददाता राकेश त्रिपाठी ने महराजगंज के शीर्ष अधिकारियों जिलाधिकारी संतोष कुमार शर्मा और पुलिस अधीक्षक सोमेंद्र मीना—को संबोधित करते हुए एक ऐसी गंभीर प्रशासनिक खामी को उजागर किया है, जो आम शिकायतकर्ताओं के न्याय की राह में सबसे बड़ी बाधा बन गई है।संवाददाता ने स्पष्ट रूप से यह बताया है कि पोर्टल पर जैसे ही कोई शिकायत दर्ज होती है, बिना किसी बाहरी या स्वतंत्र पर्यवेक्षण के, वह शिकायत सीधे उसी विभाग को जांच हेतु सौंप दी जाती है, जिस विभाग के अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई है।

यह प्रक्रिया न केवल तर्कहीन है, बल्कि यह सीधे तौर पर प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करती है। यह एक स्थापित सत्य है कि ‘कोई भी व्यक्ति अपने मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता’। इसके बावजूद, महराजगंज में इस प्रणाली का अनुपालन किया जाना, यह दर्शाता है कि प्रशासनिक अधिकारी केवल पोर्टल की निस्तारण संख्या को बढ़ाने में लगे हैं, न कि शिकायत की गुणवत्तापूर्ण जांच और न्याय दिलाने में। परिणाम यह होता है कि संबंधित विभाग बिना किसी डर या दबाव के, गलत और मनमानी आख्या लगाकर मामले को पोर्टल पर ‘निस्तारित’ घोषित कर देते हैं, जिससे शिकायतकर्ता वर्षों तक न्याय की आस में भटकता रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *