*क्या आबकारी विभाग खुद ही बन गया ‘अवैध शराब का संरक्षक’? बिना बयान IGRS निस्तारण से उठे गंभीर सवाल*

रिपोर्ट: राकेश त्रिपाठी, महराजगंज

प्रधान सम्पादक 

 

महराजगंज: जनसुनवाई पोर्टल (आई०जी०आर०एस०) को जनता की शिकायतों के त्वरित और पारदर्शी समाधान का माध्यम माना जाता है, लेकिन महराजगंज के आबकारी विभाग ने इस प्रणाली की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अवैध शराब के नेटवर्क और पत्रकार को धमकी देने के गंभीर मामले में विभाग ने शिकायतकर्ता राकेश त्रिपाठी (आई०जी०आर०एस० संख्या-40018725027819) से बिना किसी संपर्क या बयान के ही, एकतरफा जाँच के आधार पर शिकायत को निस्तारित कर दिया। शिकायतकर्ता राकेश त्रिपाठी ने आरोप लगाया है कि उन्हें जाँच अधिकारी (क्षेत्रीय आबकारी निरीक्षक) द्वारा संपर्क नहीं किया गया और न ही उनके आरोपों की पुष्टि के लिए उनका पक्ष लिया गया। इसके बावजूद, विभाग ने शिकायत को “निराधार और काल्पनिक” बताते हुए निस्तारण की आख्या पोर्टल पर अपलोड कर दी।

 

आख्या के दावे पर उठ रहे गंभीर सवाल:

 

क्षेत्रीय आबकारी निरीक्षक की जाँच आख्या में जिन तर्कों के आधार पर शिकायत को खारिज किया गया है, वे स्वयं सवालों के घेरे में हैं:

 

1. महिला विक्रेता द्वारा अवैध गांजा बिक्री: तथ्य छिपाने का प्रयास?

 

शिकायतकर्ता ने अवैध गांजा की दुकान पर महिला विक्रेता होने का उल्लेख किया था। आबकारी निरीक्षक ने इस शिकायत को तुरंत खारिज करते हुए ‘संयुक्त प्रान्त आबकारी अधिनियम, 1910’ का हवाला दिया, जिसके अनुसार महिलाओं को दुकानों में सेवायोजित नहीं किया जा सकता।

 

सवाल: क्या आबकारी अधिनियम का यह प्रावधान किसी अनधिकृत या अवैध रूप से बिक्री करने वाली महिला पर भी लागू होता है? अवैध बिक्री के नेटवर्क में विक्रेता का पद वैधानिक नहीं होता। विभाग द्वारा केवल नियम का हवाला देना, मौके पर वास्तविक स्थिति की जाँच से बचने जैसा प्रतीत होता है। क्या शिकायतकर्ता ने ‘सेवायोजित’ महिला का उल्लेख किया था, या केवल मौके पर बिक्री करते हुए महिला का?

 

2. देशी शराब मूल्य वृद्धि की शिकायत: मौके पर जाँच क्यों नहीं?

 

देशी शराब को ₹55/- के स्थान पर ₹65/- में बेचे जाने की शिकायत को भी आख्या में ‘गलत’ बताया गया है।

 

सवाल: क्या आबकारी निरीक्षक ने इस शिकायत की जाँच के लिए खुद ग्राहक बनकर या गोपनीय तरीके से मौके पर जाकर मूल्य की पुष्टि की? यदि नहीं, तो केवल दुकान के कागज़ात देखकर शिकायत को गलत कैसे ठहराया जा सकता है, जबकि अक्सर अवैध ओवररेटिंग शिकायतकर्ता के सामने होती है?

 

3. निचलौल आबकारी निरीक्षक द्वारा पत्रकार को ‘धमकी’ पर लीपापोती: अधिकारी का स्पष्टीकरण ही विरोधाभासी:

 

पत्रकार को धमकी देने के आरोप पर आबकारी निरीक्षक ने स्वीकार किया कि उन्होंने फोन पर शिकायतकर्ता से बात की थी और कहा था कि “कोई भी खबर छापने से पहले तथ्यों की पूरी जानकारी लेना चाहिए।”

 

सवाल: जब शिकायतकर्ता एक पत्रकार है और अवैध शराब के नेटवर्क को उजागर करने की कोशिश कर रहा था, तो अधिकारी द्वारा उसे ‘आधारहीन शिकायतें’ बताकर खबर छापने से पहले ‘पूरी जानकारी लेने’ की सलाह देना, क्या सीधे तौर पर उसे दबाव में लेने या धमकाने जैसा नहीं है?

 

आईजीआरएस की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न:

 

 

 

मुख्यमंत्री की प्राथमिकता वाली जनसुनवाई प्रणाली (IGRS) का मूल उद्देश्य शिकायतकर्ता के संतोष के साथ शिकायतों का त्वरित और गुणवत्तापूर्ण निस्तारण सुनिश्चित करना है। नियमों के अनुसार, अधिकारी को स्थल पर जाकर शिकायतकर्ता से संपर्क करते हुए शिकायतों का गुणवत्तापूर्ण निस्तारण करना चाहिए।

 

यहाँ आबकारी विभाग ने बिना आवेदक का पक्ष लिए, एकतरफा और आत्म-संतुष्टि वाली आख्या प्रस्तुत करके शिकायत को बंद कर दिया, जो कि IGRS के सिद्धांतों का खुला उल्लंघन है। यह कार्रवाई यह दर्शाती है कि विभाग को अपनी कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवालों को दबाने की जल्दबाजी थी, न कि समस्या के समाधान की।

 

आबकारी विभाग द्वारा निस्तारित आख्या का शिकायतकर्ता ने की निन्दा:

 

इस एकतरफा निस्तारण की निंदा करते हुए राकेश त्रिपाठी ने कहा, “आबकारी विभाग ने मेरी शिकायत को ‘काल्पनिक’ कहकर खुद ही अपनी जाँच को काल्पनिक बना दिया है। यदि जाँच हुई होती, तो मेरा बयान लिया गया होता। यह साफ दर्शाता है कि विभाग अवैध नेटवर्क पर कार्रवाई करने के बजाय, उसे बचाने और मेरी आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रहा है।”

 

अगली कार्रवाई में पीड़ित पत्रकार अब इस एकतरफा निस्तारण के विरुद्ध उच्चाधिकारियों और मुख्यमंत्री पोर्टल पर फीडबैक देकर शिकायत को पुनः खुलवाने की मांग कर सकता है।

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